गुरुवार, 24 दिसंबर 2009

नव-जीवन


नव!-नव जीवन की क्यारी में हरियाली ही हरियाली हो.
वर्ष-वर्ष बने यह जीवन का जिसमे केवल खुशहाली हो.

मं-मंद रहे दुःख की ध्वनि फिर कभी सुख का तीर न खाली हो.
-गणपति की हो कृपादृष्टि हाथों में धन की थाली हो.
-लघुता छोड़ श्रेष्ठता पा लें ऐसी आस निराली हो.
-मन प्रसन्न हो हर क्षण फिर होठों पे मधु की प्याली हो.
-यह वंदना करूँ मैं प्रभु से दुःख की न छाया काली हो.

हो-होना ही हो यदि तो फिर सुखमय वृक्षों की डाली हो.
आप सबों को नव-वर्ष में नव-जीवन की हार्दिक शुभकामनाएं...!.

बुधवार, 16 दिसंबर 2009

कहने को है ही क्या.....?

तेरी मुस्कान की क्या बात है सारे मचलते हैं .......
इधर तू मुस्कुराती है उधर भँवरे फिसलते हैं .....
नज़र को है तेरी अश्कों के दामन का ही सहारा ......
अदाएं तू दिखाती है तो क्यूँ मुझसे वो जलते हैं .......?


तुझे अब क्या कहूं ,कैसे कहूं ,कहने को है ही क्या .......?
कोई दरिया से जो उलझा तो बचने को बचा है क्या ..?
के एक दिन चाँद से पूछा ,बता क्या ख़ास है उसमे ,
नज़र से जब नज़र मिल जाये ,तो शरमाने को है ही क्या ?..
आज तो चाँद कुछ कहता ,मगर ,सूरज निकल आया ..
कहा फिर चाँद ने चुपके से ,के अब ,कहने को है ही क्या....?

शनिवार, 12 दिसंबर 2009

मेरे दिन तेरे बिन....!

तुझे याद कर दिन गुजरते रहे,ये आंसू तेरे गम में झरते रहे ...
इन्हें कोई अपना समझता नहीं,ये क्यूँ बेखबर हो बरसते रहे..!

बस उम्मीद है इनको अब ये कहीं के, दिख जाये उनकी झलक एक दिन..
बसाने को उनकी नज़र दिल में अब ये, नज़र भी नज़र को तरसते रहे...!

मेरी आरजू है तेरी ख्वाहिशों में, बनके चमन हम महकते रहे....
तेरे लफ्ज़ में अपनी आवाज़ मिल के, आवाज़ देने को तरसते रहे...!

तेरे हुस्न का अब ये दीदार करने को, नज़र मेरी क्यूँ अब तरसते रहे....
इन्हें कोई इनका ठिकाना बता दे,ये हर पल ठिकाने को भटकते रहे....!


सोमवार, 7 दिसंबर 2009

सो, हे अलि....!


मैं दिव्यमय तुम ज्योति को कैसे सहन कर पाऊंगा..
मैं चन्द्र बनकर भाप फिर तुझ ज्योति से उड़ जाऊँगा!

तव शिखर की उस दिव्यता में डूब जाना चाहूँ मैं,
तुझमे गुरु सी दिव्यता है पर कहाँ राहू हूँ मैं..!

तव आस में मैं गल गया आंसू की गिरती धार में,
तुम हो कहाँ आओ प्रिये मैं डूबता मंझधार में..!

तुम हो विरह की प्रणयिनी मैं भ्रमर-सा गुंजन करूँ,
तव-विरह के इस भँवर में किस पुष्प का अंजन करूँ ?

हे चांदनी तुम रात में निकलो न इतनी शान से,
मैं डर रहा कहीं खो न दूँ तुझको भी अपना मान के..!

इस जन्म के अंतिम क्षणों तक याद आएगी मुझे,
यह भूल जा किसी ज्योति पे कोई चन्द्र भी कभी न रीझे..!

ना दर्प में मैं चूर हूँ ना गर्व से अभिभूत हूँ,
मैं चन्द्र तेरी दिव्यता से तुझ ज्योति पे आहूत हूं...!

आती है तेरी याद तो हैं मुस्कुराते गम यहाँ,
गम के नगर में छोड़ कर मुझको, अली, तुम हो कहाँ?

हैं नयन तेरे शशक से औ गाल जैसे आम्रफल ,
तू है मेरे मन की ललक यह सोचता मैं आजकल..!

मैं मानता हूँ तुम समुन्नत पथ से नाता जोडती ,
औ मेरे पथ में आ गयी कठिनाइयां हैं कोढ़ सी..!

पर क्या करूँ मैं विवश हूं बाधाएं अब हैं तोडती...
सो, हे कली, आओ ना फिर,क्यूँ मुख हो मुझसे मोडती....?
सो, हे अलि, आओ ना फिर क्यूँ मुख हो मुझसे मोडती......!!

गुरुवार, 3 दिसंबर 2009

दोस्ती

रिश्तों की कभी दिल में गर कोई गरज नहीं होती...
दोस्ती मुश्किल भी नहीं और भी सहज नहीं होती...
निभा सको तो शुक्र है वर्ना राहें हो जाती हैं गमजदा,क्यूंकि,
दोस्ती रुक-रुक कर चलने वाली कोई नब्ज़ नहीं होती....!

मंगलवार, 1 दिसंबर 2009

मेरा परिचय ...

मैं हिन्दू मैं मुस्लिम,सिख इसाई मेरा परिचय,
त्रस्त जनों के दुःख का भेदन करता सुख का संचय..
मैं भंवरा मैं फूल बना यह काँटा मेरा परिचय..
मैं कलि-रस के नीर-क्षीर करता छत्ते में संचय......

गुरुवार, 26 नवंबर 2009

यह ज़ज्बा नहीं थमेगा............!

अब हमारी ख़ामोशी का इम्तिहान मत लेना....
नहीं-नहीं बुत हम नाकामी का तुम शोर न करना..

हमें दुश्मनी का जैसा तुम पाठ पढ़ाते हो अब
उसी रपट के इश्तिहार पे तुम अब जोर न करना..

अगर खून से मासूमों के खेल तुझे भाते हैं....
मगर खुदा की सूराएँ बेमेल नज़र आते हैं.....

जिस कुरआन की तुम आयत का देते सदा हवाला..
उसी पाक कुरआन की अब तुम बात कभी न करना...

उसने जिसे सभी खुदा का नाम इधर है लाया .
उसकी हर नेमत प्यारी है, है वो बड़ा खुदाया..

अब उसके नामों की तुम बस पाक इबारत करना...
दे देगा वो जन्नत तुमको तुम बस जतन ये करना..

मंज़र नहीं तबाही का अब फिर से मुह बाएगा..
हैवानों पे इंसानों का फतह नज़र आएगा....

उन वीरों की कुर्बानी को हर लम्हा याद रखेगा..
अब खूं कितना भी बह जाये यह ज़ज्बा नहीं थमेगा..

रविवार, 22 नवंबर 2009

जिंदगी

जिंदगी ने बिखरने की साज़िश रची
पर वो अपनी हया से सँवरती रही..
देख दर्पण में उसके हया की अदब,
जिंदगी भी अदब से निखरती रही..!

मैंने इज़हार के जब तराने लिखे,
वो तरानों के कागज कुतरती रही..
मैं तो उसकी अदाओं से बेहोश था..
फिर भी वो दिल में चुपके उतरती रही....!

उसके दीदार के आशियाने में बन ,
के अपनी हया श्वांस भरती रही..
बेअदब होके "चंपक' की ये जिंदगी,
ख्वाहिशों के समंदर में तरती रही...

मैं आया हूँ.......

रिमझिम रिमझिम झमझम सावन, भींगे तेरा तन मोरा मन,
इस सावन में भींग-भींग कर, झूमे क्यूँ मेरा ये तन-मन,
झूम-झूम के तुझे पुकारे, कहाँ छुपे हो मेरे रति-मन,
तेरे मिलन की शीत-प्यास से,मैं आया हूँ शरद-ऋतू बन...!

मुझे तनिक सा संवार देना, बिखरा-बिखरा सा है तन-मन...
तेरी ऊष्मा निखार देगी, सोच यही हर्षित हैं अंजन..!
प्यासे सावन से भींगे मन, मांगे तेरे चंचल अंजन..
तेरे मिलन की शीत-प्यास से,मैं आया हूँ शरद-ऋतू बन...!

शुक्रवार, 20 नवंबर 2009

नव-भारत..

जिसने जीवन को दांव लगा नव-युग भारत की नींव रखी...
उनने देखे सपने बनने को जगदगुरु की चाह रखी.....
उनकी यादों को कर विस्मृत हमने क्या उनकी लाज रखी....
क्या यही वही है नव-भारत, या फिर यह है कुछ और सखी..?

अपनी इच्छा का घोंट गला क्यूँ बलिदानों की राह चुनी..
क्या यही सोचकर अंग्रेजों के जन-विरोध की तान बुनी...
के अब भारत प्रगति-पथ पर आगे ही बढ़ता जाएगा...
क्या यही वही है नव-भारत, या फिर यह है कुछ और सखी ....?

गुरुवार, 19 नवंबर 2009

अदाएं....

अदाएं आशिकों की 'जान' तो होती नहीं चम्पक,
अदाएं 'जान' ले, शम्मे-हंसी की शान होती है....
कभी कोई ग़ज़ल हालात पे शायर अगर लिख दे,
अगर शायर न हो शामिल ग़ज़ल बेजान होती है..


कभी भँवरे ने कलियों से कभी कांटे ने फूलों से
बयां अपने मुहब्बत का नज़ारा यूँ किया दिल से...
मैं तेरी राह में मिट जाऊं तेरी दास्ताँ बनकर,
मुझे खारिज न कर देना तेरे इबरार-इ-महफ़िल से ..
.

बुधवार, 18 नवंबर 2009

सुन जरा-सा ..!

ओ सजीले, नयन नीले, अधर तेरे हैं रसीले....
सुन ज़रा-सा, स्नेह तेरा, मांगता हूँ और क्या..?


घोलती है कान में बस, यूँ तेरी आवाज हरदम...
तुम न हो जो पास तो, फिर सांझ क्या, फिर भोर क्या...?


पूछता है दिल मुझी से, तुम कहो क्या चाहते हो....
मैं कहूँ क्या,कह सका ना, दिल में है क्या, जान में क्या...?


मैं तुझे मदिरालयों में ढूंढता-फिरता रहा हूँ....
तुम मिले तो सांझ क्या,जब ना मिले तो भोर क्या...?


सुन तेरी आवाज अब मैं, हर-तरफ पहचानता हूँ....
तुम रहो गुमसुम सदा, तो गीत क्या, फिर शोर क्या....?

बाल-सलाह !

'सचिन' ध्यान दें खेल पर ऐसी 'बाल'-सलाह..
राजनीति के खेल पर उनकी आह-कराह...
उनकी आह-कराह मराठी हित की बात सुनाती..
पर ख़ुद की गुगली से ही पिटने पर शोर मचाती..

जीवन के अन्तिम लम्हों में भजन करें या कीर्तन..
पिछले वर्षों के पाप धुले ऐसे हो धर्मज-कर्मण..
ऐसे हो धर्मज कर्मण के अब गर्व मराठी कर लें...
सैनिक का धर्मं निभाना हो तो याद शिवा को कर लें..





मंगलवार, 17 नवंबर 2009

दिल की शायरी....

आंसुओं की स्याही से दिल के कागज पे
बयां हो दर्द-ऐ-दिल तो उसे दिल की डायरी कहते हैं,और,
महबूबा की खिदमत में महबूब के होठों से
बयां हो दर्द-ऐ-दिल तो उसे दिल की शायरी कहते हैं...!



ग़मों की आंच पे आंसू उबाल कर देखो,
बनेंगे रंग मेरे दिल पे दाल कर देखो..
तुम्हारे दिल की चुभन भी ज़रूर कम होगी,
मेरे दिल में चुभे कांटे निकाल कर देखो....!


अपने होठों पे यूँ ही मुस्कान बिछाए रखना,
अपनी आँखों में यूँ ही खुशियाँ सजाये रखना..
तुझे पाने को हर पल मचलता होगा वो,
उसकी चाहत को अपने दिल में यूँ ही जगाये रखना...!


तेरे होठों से खुद को पीने की ख्वाहिश है मेरी,
इस क़दर छह रहा है नशा मुझपे तेरी जवानी का..
तुझे तो मिल जायेंगे सनम कितने हसीं तराने,पर,
इतना तो बता क्या होगा फिर मेरी कहानी का..?


जबसे देखा है तुमको मेरी चाहत खो गयी है,
तुझे पाना है शायद इसीलिए तुझसे मुहब्बत हो गयी है..
देखो,अब न मत कह देना,क्यूंकि,
तुझे पाकर लगेगा के मेरी इबादत हो गयी है......!


कभी दिल के झरोखे में तेरा ही एक सपना था,
कभी पलकों के साए में मेरा एक दोस्त अपना था..
तुझे तो दिल की चौखट पे कभी मैंने बुलाया था,
वो,यूँ के नाम मेरे लब को बस तेरा ही जपना था...!


जहाँ देखूं वही तेरी ही खुशबु से महकता है,
जिसे चाहूँ वो भी तेरी ही गलियों में चहकता है..
कभी खुद की तरफ जो गौर से देखा यूँ ही मैंने,
मेरी आँखों में केवल तू ही बस्ती है ये लगता है..!

दोस्ती में दर्द हो तो वो प्यार होता है,
दर्द कुबूल हो तो वो इकरार होता है..
दर्द सह न पाओ तो वो इंतज़ार होता है,और,
दर्द सह लो तो वही तो इश्क-ऐ-इज़हार होता है....

सोमवार, 16 नवंबर 2009

तेरे इश्क में..

तेरे इश्क में मैं इस क़दर जिया हूँ के जीना भी जेने -सा लगता नहीं है ..
तेरे प्यार के गम में इस क़दर पिया हूँ के पीना भी पीने-सा लगता नहीं है....
तेरे इश्क में मैं.....

शनिवार, 14 नवंबर 2009

बाल-दिवस पर बच्चों को समर्पित: "बच्चे मन के सच्चे ."..

बच्चों के चाचा हैं जैसे बच्चे मन के सच्चे..
करते मनोविनोद सभी के बनके बच्चे अच्छे..
बनके बच्चे अच्छे सब लोगों को सदा सुहाते..
अभी शरारत हंसी-ठिठोली दुःख में भी ये सच्चे.
बिलकुल, बच्चे मन के सच्चे..
हाँ जी,बच्चे मन के सच्चे..!

समर्पण...!

दिव्य नही गर दीप हो तुम,मैं कहाँ विषधर, कहाँ तुम हो प्रिये कुमकुम..!
कर समर्पण तुझमे अपना स्वत्व मैं यह मान लूँ ,
कि तू सुधा से है लसित,औ, मैं गरल में गुम..हाँ,मैं गरल में गुम....!

जीव-प्रकृति की इस अद्भुत प्रणय-लीला के लिए,
बनके आया हूँ मैं उस अमरत्व की इक बूँद..
जिसकी खातिर जन्मते हैं सैंकड़ों नर-नारीगण,
औ,चाँद-लम्हे ढारकर खो जाते हैं बन धुंध....हाँ मैं गरल में गुम..!


दीप की उत्तुंग ज्योति में स्वत्व का आवेश कर,
क्यूँ भला, वह कीट कहता स्नेह का फ़िर वेश धर..
तू ही मेरा धर्म है औ तू ही मेरी आत्मा,
पाश में खो जाऊं तेरे मैं विरल बन धूम... हाँ,मैं गरल में गुम....!


भूलकर भी मैं तुम्हे कर याद सकता हूँ प्रिये,
क्यूँ सोचती हो इस तरह क्या भूलना मैं छोड़ दूँ.
भूलना है इक क्रिया तो याद करना प्रतिक्रिया,
स्नेह के आवेश में ये द्विपदी है अनुलोम...हाँ, मैं गरल में गुम..!

शुक्रवार, 13 नवंबर 2009

उनकी परेशानी...!

" मेरी आवारगी से वो परेशाँ से नज़र आये..
मेरी बेचारगी से आँखों में आंसू छलक आये..
उन्हें, दिल को मेरे, रोने की आदत के ख्यालों ने,
बनाया इस कदर हैराँ के वो हंसते नज़र आये..! "

सोमवार, 9 नवंबर 2009

हया

मेरे इज़हार को कमज़ोर करने की तमन्ना से
मुझे हर रास्ते पे रोककर खुशियाँ मनाते हैं ..
मेरे हर जख्म को वो क्यूँ हरा करने की ख्वाहिश में
हया करते नहीं वो बेहया बन मुस्कुराते हैं..

शनिवार, 7 नवंबर 2009

व्यस्त केश सह दो मृदंग अरु शीत नयन से कहाँ चली..?
चैन शिखर का लूट कृपण-सी चंचलता से नहा चली....

चन्द्र बना मैं शीतलता से व्योम केश से कह आया...
मैं तेरा अर्धांग इधर हूँ तुम हो कहाँ जगाद्माया..?


नैनों की मदिरा छलकाकर मृगनयनी बन इठलाती..
तू मृगी मृग तेरा मैं फिर क्यूँ पास आने में सकुचाती..?


अगर कहो तुम निश्छल हंसी हो औ मैं असुअन की धारा..
तब निर्द्वंद्व भाव से फिर मैं छोर चलूँ यह जग सारा..


तुम बिन जीना इस दुनिया में मुझको नहीं गंवारा...
बस इतना कह पाउँगा मैं तुम जीते मैं हारा...


तुम जीती मैं हारा सखी-री, तुम जीती मैं हारा...!

गुरुवार, 5 नवंबर 2009

प्रतिबिम्ब...!


ये अधर नहीं प्रतिबिम्ब तेरी मधु से मीठे मुस्कान की है..
जिनके प्यासे अब तड़प रहे उनके प्रेयस अनुमान की है...
इनकी शीतलता के अनुभव का आलिंगन अब कौन करें....
इन होठों पे अब यही प्रश्न अधरों के मद-अभिमान की है..

रविवार, 25 अक्तूबर 2009

चम्पक-नामा ...!

हमारी हस्ती है सबकी दोस्ती से बढ़कर एक कदम !
यह जाम छलक जाने दो एक बार तो सनम !
बांधेंगे मिलके एक हम ऐसी निषे -समां ,
के हर वक़्त नजर आएंगे आसमा में मेरे दम !
गुरुआ की जमी पे लिया है हमने यूँ जनम ,
तू साथ तो दे कर देंगे हम रोशन कदम -कदम !"

कोई भौंरा बगीचे की हर एक कलियों पे मरता है,
मधु पी के नशे में भी वो क्यूँ आहें ही भरता है?
शमा की आग में जलने से परवाना नहीं डरता,
शमा के साथ जीता है शमाँ के साथ मरता है....!

कोई दिलवाला तेरी यादों में हद से भी गुजर जाये...
कोई मतवाला तेरी आँखों में छलके जाम पी जाये..
तुझे दे दे ख़ुशी इतनी कोई मिल जाये यूँ ऐसा,
के,तेरी आँखों में आंसू भी ख़ुशी बनके छलक आये..!

खड़े होके न तुम देखो ये तो महफ़िल हमारी है,
भले ही राह तेरी है मगर मंजिल हमारी है,
मेरी आँखों के आंसू की तनिक परवाह मत करना...
मुझे इतना ही कह देना मुझे हमदम न तडपाये..!!

दुआ में एक गुलशन दोस्ती का तुम सजा लेना..
मेरी नाकाबिले अर्जी को तुम काबिल बना लेना..
खुदा को ढूंढता जो भी फ़रिश्ते की तरह आये,
उसी को ईद के मौके पे तुम ईदी बना लेना....

ज़माने को ज़माने से खुदा ने टूटते देखा ...
अमन के नाजनीनों को समर में जूझते देखा ...
जहाँ में फिर खुदा ने भेजकर गुलशन नया ऐसा ,
ज़मीं पे फिर चमन को मुस्कुराते झूमते देखा ....!!

बुधवार, 21 अक्तूबर 2009

देखो छलक न जाए.....!


देखो छलक न जाये अब ये जाम तेरी आँखों से...
हमको फंसा न देना कर बदनाम तेरी आँखों से...
लुट जायेंगे सब तेरी चाहत के ये दीवाने...
उन पर लगा न देना अब इल्जाम तेरी आँखों से....!

परवाना सुनता है अब हर नाम तेरी आँखों से...
दीवाना है देख रहा अंजाम तेरी आँखों से...
खुद को साबित करने को हैं बेतरतीब निगाहें..
इनका मत लेना कोई एग्जाम तेरी आँखों से...!

दीवानों का तो है पीना अब काम तेरी आँखों से..
उनको तू ये दे देना पैगाम तेरी आँखों से...
के, परवानों का शिद्दत से यूँ दरिया में बह जाना,
कर जाता है घायल क्यूँ ये जाम तेरी आँखों से...?

मंगलवार, 20 अक्तूबर 2009

बचपन-चिर-यौवन...!

बचपन के सपनो को ढोता अब डगर-डगर मैं भटक रहा,
अपनी हालत पे पछताता नैनो से आंसू छलक रहा..!

किसकी स्नेहिल आँखों से मैं देखूं कोई मधुरिम सपना,
अब नज़र नहीं आता दुश्मन अब नहीं रहा कोई अपना..!

किसने पैरों से है कुचला किसने हाथों से मसल दिया,
किसने कर से कर मिला मुझे किस्मत का उर्वर फसल दिया...!

अब ऐसे पथ पे निकल पड़ा हूँ जहाँ अथक चलता जाऊँ,
हर बाधाओं को तोड़ विकट संकट में भी बढ़ता जाऊं..!

क्या कभी समय वो आएगा जब मेरा बचपन खेलेगा,
बचपन से यौवन का संगम सर्वस्व-समर्पण ले लेगा...!

मंदी ने ऐसा मंद किया हर ऑर निराशा का घेरा,
आँखों में बेचैनी छाई मन में भावुकता का डेरा..!

वो कहाँ पिता की गोद विहग वो यूँ माँ की फैली बाहें,
बचपन अब भी उम्मीदों के साए में दिखलाता राहें..!

बस यही समर में गूंजेगा हम हर हालत में जूझेंगे,
अब हर मुश्किल में और सुघड़ ताकतवर बनकर उभरेंगे..
!

सोमवार, 19 अक्तूबर 2009

शुभ दीवाली...!

यह वही अमावस है जिसमे अँधेरा जग में छाता है..
पर अँधेरे से निकल तभी दीपक रोशन सा आता है..
सबकी दुनिया को दे ज्योति
खुशियों का राग सुनाता है..
ऐसे हो जग जगमग सबका हर पल ये वो समझाता है...
इस दीवाली में दिल अपना यूँ सूना-सूना सा लागे,
पर होठों पे मुस्कान तेरी मन को मेरे शीतल लागे...
अब रब से बस इतना कह दूं ये दुआ हमारी सुन लेना..

चम्पक
के सब मित्रों को तू शुभ-दीवाली कह खुश रखना....!

बुधवार, 14 अक्तूबर 2009

भ्रमर-गुंजन....!


यदि नही होता पराग फूलों के अंतस्थल में, फिर क्या भ्रमर भ्रमण करता कलियों के वासस्थल में....? नही पुष्प-मधु बिन भंवरों का रस-गुंजन तब होता, फिर सरसता को भ्रमर-पथ्य का योजन करना होता.......!


----
Champak

रविवार, 11 अक्तूबर 2009

चम्पक की मधुशाला...!


इसकी भी है उसकी भी है हर प्याले की है हाला,

क्यूँ "चम्पक" को आंसू भर-भर के, जाम पिलाती मधुशाला...?


हर ओर भ्रमर का राग सुनु, अब हर पराग भी है व्याला...

पर क्यूँ "चम्पक" अब हर प्याले में, खोज रहा यूँ मधुशाला?


क्यूँ शीतलता के दामन से, है ओत-प्रोत यह कर-माला...

फिर भी "चम्पक" को कर-माला से, दूर रखे क्यूँ मधुशाला...?


मधु की ऊष्मा का आलंबन, "चम्पक" से क्यूँ छीने हाला...

यदि नही मिले मद-मधु-माला, दे मुझे हलाहल-मधुशाला...!


प्यासा पथ पे मधु का कब से ढूंढें अपनी प्यासी हाला...

क्यूँ "चम्पक" को ग़म के आंसू, भर-भर देती है मधुशाला...?


हाला प्यासी, प्याले प्यासे, प्यासी है प्याले की हाला...

अब डगर-डगर "चम्पक" की धुन, क्यूँ गाये प्यासी मधुशाला...?

शनिवार, 10 अक्तूबर 2009




यूँ सहम-सहम कर ही हमने जीने की आदत डाली है....

सत्ता के आगे हो बेबस लुटने की आदत डाली है.....!

नर हो पशु की भाँती जीवन जीकर भी क्या पाया हमने,

घुट कर मरने को ही प्रभु ने, क्या,यह जान बदन में डाली है.........?



है असमंजस में युवा-शक्ति फिर तो यह क्या कर पाएगी,

क्या भ्रष्ट समष्टि से उठकर चेतन व्यष्टि रच पाएगी.......!

यदि नही अभी भी चेतनता युव-युग दृष्टि रच पाती है,

हो तेजहीन ,आसन्न अंत से यह कैसे बच पाएगी....?




मंगलवार, 6 अक्तूबर 2009

युवा-शक्ति :भारत

लोग कहते हैं की भारत युवाओं का देश है.आज की युवा-उर्जशक्ति तो फिर चुप क्यूँ है?देश में चरों तरफ भ्रष्टाचार फैला हुआ है......प्राकृतिक वातावरण में अप्राकृतिक शोर मचा है..विश्व का सर्वोत्तम लोकतंत्र होंने का गौरव भी हमें ही प्राप्त है पर इस लोकतंत्र का सीना chhalni क्यूँ और कैसे होता जा रहा है इस पर युवा -शक्ति इस तरह से खामोश क्यूँ है?क्या हम की अवतार या चमत्कार की प्रतीक्षा कर रहे हैं ?क्या हम अपनी युव-चेतना को यूँ ही नाश्ता होते देखना चाहते हैं?आखिर कौन करेगा शुरुआत?हम कबतक होठों पे पट्टियां बांधे रहेंगे.....जब लोकतंत्र हमारा यूँ कराहता अपे भविष्यगामी पतन की और अग्रसर है?
----------------->

"" क्यूँ लोकतंत्र का पतन देख 'भारत' सोता है?

क्या नहीं उसे वेदना-विषद अनुभव होता है?
कभी असम कभी गुजरात-बंग रक्तिम होता है,
हा-हा करती यह धरा गगन अब क्यूँ रोता है? ""
आखिर कबतक ?जागो युवा शक्ति जागो ...अपनी उर्जा का असीमता को पहचानो......!