रविवार, 4 अप्रैल 2010






नज़र को तो तेरी नज़रों के नजराने की चाहत है,
तेरे लब से मुझे बस मुस्कुरा लेने की चाहत है,
कि अब उम्मीद है इतनी मेरे टूटे हुए दिल में,
अब इन अश्कों को किश्तों में लुटा देने की चाहत है...!




दीवानों की तरह हम भी मचलते हैं तेरे गम में,
तेरे खामोश लब की धुन नज़र आती है सरगम में,
कहीं कोई किरण अब भी नहीं आशा की दिखती है..
नजारो से ज़रा पूछो तड़प इतनी है क्यूँ हम में ?

शनिवार, 3 अप्रैल 2010






यहाँ हर मोड़ पे, हर उम्र के, दीवाने मिलते हैं,
कहीं भौंरे मधु पीते, कहीं परवाने जलते हैं..
मगर ये तो सरासर बेईमानी का फ़साना है,
वो हर पल मौज में जीते, हमें बस ताने मिलते हैं....!