रविवार, 10 अप्रैल 2011

गीला कागज



इश्क  में  मैं  तेरे  स्याह  सी  बन  गयी ,


तू  जो  कागज  हुआ ,मैं  कलम  बन  गयी ,


तूने  देखा  नहीं  अश्क  की  धार  को ,


मैं  तेरा  कागजी -गीलापन  बन  गयी ...



तू  अकेला  कहाँ,  मैं  तेरे  साथ  थी, 


पर  कड़ी  धुप  में  मैं  नज़म  बन  गयी 


तेरी  उड़ने   की  इन   ख्वाहिशों  से  मगर 

तुझको  खोकर  भी  तेरा  सनम  बन  गयी ..



सूखे पत्ते के जैसा गिरा मैं, तभी,

डाल की हर कली चहचहाने लगी,,

जिसकी गुमनाम यादों में मैं खो रहा,

अश्क से मेरी नज़रें नहाने लगीं,


वो मेरी नफरतों की नज़म गुफ्तगू,

बनके सपनो में मुझको रुलाने लगी,



तोड़कर प्यार के दिल के भी रिश्ते वो,

हसरतों से मुझे यूँ भुलाने लगी,

सचिन,धोनी, और विश्व-कप: हिन्दुस्तान



कोई बॉलर नहीं ऐसा जिसे खेले न वो खुलकर,


"शहंशाह" है जो हर पिच का वही है जीत का मंतर,



समर में बेईमानों का जो ढीला पेंच यूँ कर दे,



वो है "भगवान्" दुनिया का जिसे कहते हैं "तेंदुलकर",





जहाँ पर हो "सचिन","सहवाग", "गौती", "कोहली", "रैना",



जहाँ "भज्जी", "युवी", "श्रीसंथ", "मुनाफु" का "ज़हीराना",



जहाँ "धोनी" की कप्तानी से थर्राए जगत सारा,


ये "हिन्दुस्तान" है इसको किसी से और क्या डरना..?


सुरूर




हमने जनम की उसने ज़माने की बात की ,

उसने मेरे सुरूर भुलाने की बात की , 

ताउम्र जिस खजाने में शामिल किया मुझे ,

उसने उसी खजाने को लुटाने की बात की ...



न फिक्र करना तू मेरी अब बेवफाई का
,
जितनी वफ़ा की,बेवफा की हद वहां तक है...

मत पूछ, मेरी हसरतें सागर हैं सितम के,

तू देख कि तेरी सबर की हद कहाँ तक है...!