कवि बनने की राह पर नए खुशबूदार पुष्प मिले ,उन्हें एक माला की तरह,अपने कविता-प्रेम के धागे में पिरोकर आगे बढ़ता गया,इन नए पुष्पों को संजोने की कोशिश में एक बहका सा और थोडा भटका सा शायर बन बैठा ,यहाँ प्रस्तुत हैं कुछ वैसे ही अनमोल पुष्प जिन्हें अलग विषयों और अलग-अलग लोगों की पसंद के अनुसार लिखा था मैंने.आप सबसे यही अपेक्षा है कि मुझे आपके प्रेम की छाँव-तले और भी नए खुशबूदार पुष्प मिलें.जिन्हें अपने उसी प्रेम की माला में पिरोकर मैं एक अच्छा शायर और एक उत्कृष्ट कवि बन जाऊं!
रविवार, 10 अप्रैल 2011
सचिन,धोनी, और विश्व-कप: हिन्दुस्तान
कोई बॉलर नहीं ऐसा जिसे खेले न वो खुलकर,
"शहंशाह" है जो हर पिच का वही है जीत का मंतर,
समर में बेईमानों का जो ढीला पेंच यूँ कर दे,
वो है "भगवान्" दुनिया का जिसे कहते हैं "तेंदुलकर",
जहाँ पर हो "सचिन","सहवाग", "गौती", "कोहली", "रैना",
जहाँ "भज्जी", "युवी", "श्रीसंथ", "मुनाफु" का "ज़हीराना",
जहाँ "धोनी" की कप्तानी से थर्राए जगत सारा,
ये "हिन्दुस्तान" है इसको किसी से और क्या डरना..?
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