रविवार, 10 अप्रैल 2011




सूखे पत्ते के जैसा गिरा मैं, तभी,

डाल की हर कली चहचहाने लगी,,

जिसकी गुमनाम यादों में मैं खो रहा,

अश्क से मेरी नज़रें नहाने लगीं,


वो मेरी नफरतों की नज़म गुफ्तगू,

बनके सपनो में मुझको रुलाने लगी,



तोड़कर प्यार के दिल के भी रिश्ते वो,

हसरतों से मुझे यूँ भुलाने लगी,

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