तेरे इश्क में इस क़दर खो रहा हूँ,
सड़क पे ही मैं आजकल सो रहा हूँ,
कहीं मार डाले मुझे ना जुदाई ,
यही सोचकर मैं बहुत रो रहा हूँ....
बहारों ने मुझको मचलना सिखाया,
नजारों ने हर पल बदलना सिखाया,
तेरी याद फिर भी मुझे क्यूँ सताए ...
मैं क्यूँ इस क़दर अश्क में खो रहा हूँ...
कवि बनने की राह पर नए खुशबूदार पुष्प मिले ,उन्हें एक माला की तरह,अपने कविता-प्रेम के धागे में पिरोकर आगे बढ़ता गया,इन नए पुष्पों को संजोने की कोशिश में एक बहका सा और थोडा भटका सा शायर बन बैठा ,यहाँ प्रस्तुत हैं कुछ वैसे ही अनमोल पुष्प जिन्हें अलग विषयों और अलग-अलग लोगों की पसंद के अनुसार लिखा था मैंने.आप सबसे यही अपेक्षा है कि मुझे आपके प्रेम की छाँव-तले और भी नए खुशबूदार पुष्प मिलें.जिन्हें अपने उसी प्रेम की माला में पिरोकर मैं एक अच्छा शायर और एक उत्कृष्ट कवि बन जाऊं!
रविवार, 26 दिसंबर 2010
शनिवार, 26 जून 2010
यादों के फेरें......
रविवार, 4 अप्रैल 2010
शनिवार, 3 अप्रैल 2010
शुक्रवार, 12 मार्च 2010
.......डूबता रहा हूँ मैं
शुक्रवार, 5 मार्च 2010
जुर्रत
शनिवार, 27 फ़रवरी 2010
तेरी हया
सदस्यता लें
संदेश (Atom)