कवि बनने की राह पर नए खुशबूदार पुष्प मिले ,उन्हें एक माला की तरह,अपने कविता-प्रेम के धागे में पिरोकर आगे बढ़ता गया,इन नए पुष्पों को संजोने की कोशिश में एक बहका सा और थोडा भटका सा शायर बन बैठा ,यहाँ प्रस्तुत हैं कुछ वैसे ही अनमोल पुष्प जिन्हें अलग विषयों और अलग-अलग लोगों की पसंद के अनुसार लिखा था मैंने.आप सबसे यही अपेक्षा है कि मुझे आपके प्रेम की छाँव-तले और भी नए खुशबूदार पुष्प मिलें.जिन्हें अपने उसी प्रेम की माला में पिरोकर मैं एक अच्छा शायर और एक उत्कृष्ट कवि बन जाऊं!
शुक्रवार, 12 मार्च 2010
.......डूबता रहा हूँ मैं
किसी सूखे पत्ते की तरह हवा में यूँ ही उड़ता रहा हूँ मैं... रास्ते के पत्थर की तरह हर ठोकर पे यूँ ही टूटता रहा हूँ मैं.. तेरा सहारा लेकर पार कर जाऊंगा मैं ये तूफ़ाने जिंदगी , बस इसी आस में आजतक अकेला ही डूबता रहा हूँ मैं...
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ब्लॉग पर आने के लिए और अपने अमूल्य विचार व्यक्त करने के लिए चम्पक की और से आपको बहुत बहुत धन्यवाद .आप यहाँ अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर हमें अपनी भावनाओं से अवगत करा सकते हैं ,और इसके लिए चम्पक आपका सदा आभारी रहेगा .
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--धन्यवाद !