गुरुवार, 24 दिसंबर 2009

नव-जीवन


नव!-नव जीवन की क्यारी में हरियाली ही हरियाली हो.
वर्ष-वर्ष बने यह जीवन का जिसमे केवल खुशहाली हो.

मं-मंद रहे दुःख की ध्वनि फिर कभी सुख का तीर न खाली हो.
-गणपति की हो कृपादृष्टि हाथों में धन की थाली हो.
-लघुता छोड़ श्रेष्ठता पा लें ऐसी आस निराली हो.
-मन प्रसन्न हो हर क्षण फिर होठों पे मधु की प्याली हो.
-यह वंदना करूँ मैं प्रभु से दुःख की न छाया काली हो.

हो-होना ही हो यदि तो फिर सुखमय वृक्षों की डाली हो.
आप सबों को नव-वर्ष में नव-जीवन की हार्दिक शुभकामनाएं...!.

बुधवार, 16 दिसंबर 2009

कहने को है ही क्या.....?

तेरी मुस्कान की क्या बात है सारे मचलते हैं .......
इधर तू मुस्कुराती है उधर भँवरे फिसलते हैं .....
नज़र को है तेरी अश्कों के दामन का ही सहारा ......
अदाएं तू दिखाती है तो क्यूँ मुझसे वो जलते हैं .......?


तुझे अब क्या कहूं ,कैसे कहूं ,कहने को है ही क्या .......?
कोई दरिया से जो उलझा तो बचने को बचा है क्या ..?
के एक दिन चाँद से पूछा ,बता क्या ख़ास है उसमे ,
नज़र से जब नज़र मिल जाये ,तो शरमाने को है ही क्या ?..
आज तो चाँद कुछ कहता ,मगर ,सूरज निकल आया ..
कहा फिर चाँद ने चुपके से ,के अब ,कहने को है ही क्या....?

शनिवार, 12 दिसंबर 2009

मेरे दिन तेरे बिन....!

तुझे याद कर दिन गुजरते रहे,ये आंसू तेरे गम में झरते रहे ...
इन्हें कोई अपना समझता नहीं,ये क्यूँ बेखबर हो बरसते रहे..!

बस उम्मीद है इनको अब ये कहीं के, दिख जाये उनकी झलक एक दिन..
बसाने को उनकी नज़र दिल में अब ये, नज़र भी नज़र को तरसते रहे...!

मेरी आरजू है तेरी ख्वाहिशों में, बनके चमन हम महकते रहे....
तेरे लफ्ज़ में अपनी आवाज़ मिल के, आवाज़ देने को तरसते रहे...!

तेरे हुस्न का अब ये दीदार करने को, नज़र मेरी क्यूँ अब तरसते रहे....
इन्हें कोई इनका ठिकाना बता दे,ये हर पल ठिकाने को भटकते रहे....!


सोमवार, 7 दिसंबर 2009

सो, हे अलि....!


मैं दिव्यमय तुम ज्योति को कैसे सहन कर पाऊंगा..
मैं चन्द्र बनकर भाप फिर तुझ ज्योति से उड़ जाऊँगा!

तव शिखर की उस दिव्यता में डूब जाना चाहूँ मैं,
तुझमे गुरु सी दिव्यता है पर कहाँ राहू हूँ मैं..!

तव आस में मैं गल गया आंसू की गिरती धार में,
तुम हो कहाँ आओ प्रिये मैं डूबता मंझधार में..!

तुम हो विरह की प्रणयिनी मैं भ्रमर-सा गुंजन करूँ,
तव-विरह के इस भँवर में किस पुष्प का अंजन करूँ ?

हे चांदनी तुम रात में निकलो न इतनी शान से,
मैं डर रहा कहीं खो न दूँ तुझको भी अपना मान के..!

इस जन्म के अंतिम क्षणों तक याद आएगी मुझे,
यह भूल जा किसी ज्योति पे कोई चन्द्र भी कभी न रीझे..!

ना दर्प में मैं चूर हूँ ना गर्व से अभिभूत हूँ,
मैं चन्द्र तेरी दिव्यता से तुझ ज्योति पे आहूत हूं...!

आती है तेरी याद तो हैं मुस्कुराते गम यहाँ,
गम के नगर में छोड़ कर मुझको, अली, तुम हो कहाँ?

हैं नयन तेरे शशक से औ गाल जैसे आम्रफल ,
तू है मेरे मन की ललक यह सोचता मैं आजकल..!

मैं मानता हूँ तुम समुन्नत पथ से नाता जोडती ,
औ मेरे पथ में आ गयी कठिनाइयां हैं कोढ़ सी..!

पर क्या करूँ मैं विवश हूं बाधाएं अब हैं तोडती...
सो, हे कली, आओ ना फिर,क्यूँ मुख हो मुझसे मोडती....?
सो, हे अलि, आओ ना फिर क्यूँ मुख हो मुझसे मोडती......!!

गुरुवार, 3 दिसंबर 2009

दोस्ती

रिश्तों की कभी दिल में गर कोई गरज नहीं होती...
दोस्ती मुश्किल भी नहीं और भी सहज नहीं होती...
निभा सको तो शुक्र है वर्ना राहें हो जाती हैं गमजदा,क्यूंकि,
दोस्ती रुक-रुक कर चलने वाली कोई नब्ज़ नहीं होती....!

मंगलवार, 1 दिसंबर 2009

मेरा परिचय ...

मैं हिन्दू मैं मुस्लिम,सिख इसाई मेरा परिचय,
त्रस्त जनों के दुःख का भेदन करता सुख का संचय..
मैं भंवरा मैं फूल बना यह काँटा मेरा परिचय..
मैं कलि-रस के नीर-क्षीर करता छत्ते में संचय......