बुधवार, 16 दिसंबर 2009

कहने को है ही क्या.....?

तेरी मुस्कान की क्या बात है सारे मचलते हैं .......
इधर तू मुस्कुराती है उधर भँवरे फिसलते हैं .....
नज़र को है तेरी अश्कों के दामन का ही सहारा ......
अदाएं तू दिखाती है तो क्यूँ मुझसे वो जलते हैं .......?


तुझे अब क्या कहूं ,कैसे कहूं ,कहने को है ही क्या .......?
कोई दरिया से जो उलझा तो बचने को बचा है क्या ..?
के एक दिन चाँद से पूछा ,बता क्या ख़ास है उसमे ,
नज़र से जब नज़र मिल जाये ,तो शरमाने को है ही क्या ?..
आज तो चाँद कुछ कहता ,मगर ,सूरज निकल आया ..
कहा फिर चाँद ने चुपके से ,के अब ,कहने को है ही क्या....?

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