शनिवार, 27 फ़रवरी 2010

तेरी हया



तेरी ज़ालिम अदाओं ने मुझे हर बार मारा है..
कभी थोड़ी हया से तो कभी बेबाक मारा है..
मेरे आंसू तेरी आँखों के शीतल नाज़ बन जाते,
मगर उनको तेरी नफरत ने तो बिंदास मारा है..!

1 टिप्पणी:

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--धन्यवाद !