रविवार, 22 नवंबर 2009

मैं आया हूँ.......

रिमझिम रिमझिम झमझम सावन, भींगे तेरा तन मोरा मन,
इस सावन में भींग-भींग कर, झूमे क्यूँ मेरा ये तन-मन,
झूम-झूम के तुझे पुकारे, कहाँ छुपे हो मेरे रति-मन,
तेरे मिलन की शीत-प्यास से,मैं आया हूँ शरद-ऋतू बन...!

मुझे तनिक सा संवार देना, बिखरा-बिखरा सा है तन-मन...
तेरी ऊष्मा निखार देगी, सोच यही हर्षित हैं अंजन..!
प्यासे सावन से भींगे मन, मांगे तेरे चंचल अंजन..
तेरे मिलन की शीत-प्यास से,मैं आया हूँ शरद-ऋतू बन...!

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