गुरुवार, 5 नवंबर 2009

प्रतिबिम्ब...!


ये अधर नहीं प्रतिबिम्ब तेरी मधु से मीठे मुस्कान की है..
जिनके प्यासे अब तड़प रहे उनके प्रेयस अनुमान की है...
इनकी शीतलता के अनुभव का आलिंगन अब कौन करें....
इन होठों पे अब यही प्रश्न अधरों के मद-अभिमान की है..

1 टिप्पणी:

  1. मेरे ब्लॉग पर आने के लिए और टिपण्णी देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया! मेरे अन्य ब्लोगों पर भी आपका स्वागत है! बहुत सुंदर लिखा है आपने जो दिल को छू गई!

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ब्लॉग पर आने के लिए और अपने अमूल्य विचार व्यक्त करने के लिए चम्पक की और से आपको बहुत बहुत धन्यवाद .आप यहाँ अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर हमें अपनी भावनाओं से अवगत करा सकते हैं ,और इसके लिए चम्पक आपका सदा आभारी रहेगा .

--धन्यवाद !