
ये अधर नहीं प्रतिबिम्ब तेरी मधु से मीठे मुस्कान की है..
जिनके प्यासे अब तड़प रहे उनके प्रेयस अनुमान की है...
इनकी शीतलता के अनुभव का आलिंगन अब कौन करें....
इन होठों पे अब यही प्रश्न अधरों के मद-अभिमान की है..
कवि बनने की राह पर नए खुशबूदार पुष्प मिले ,उन्हें एक माला की तरह,अपने कविता-प्रेम के धागे में पिरोकर आगे बढ़ता गया,इन नए पुष्पों को संजोने की कोशिश में एक बहका सा और थोडा भटका सा शायर बन बैठा ,यहाँ प्रस्तुत हैं कुछ वैसे ही अनमोल पुष्प जिन्हें अलग विषयों और अलग-अलग लोगों की पसंद के अनुसार लिखा था मैंने.आप सबसे यही अपेक्षा है कि मुझे आपके प्रेम की छाँव-तले और भी नए खुशबूदार पुष्प मिलें.जिन्हें अपने उसी प्रेम की माला में पिरोकर मैं एक अच्छा शायर और एक उत्कृष्ट कवि बन जाऊं!
मेरे ब्लॉग पर आने के लिए और टिपण्णी देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया! मेरे अन्य ब्लोगों पर भी आपका स्वागत है! बहुत सुंदर लिखा है आपने जो दिल को छू गई!
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