रविवार, 25 अक्तूबर 2009

चम्पक-नामा ...!

हमारी हस्ती है सबकी दोस्ती से बढ़कर एक कदम !
यह जाम छलक जाने दो एक बार तो सनम !
बांधेंगे मिलके एक हम ऐसी निषे -समां ,
के हर वक़्त नजर आएंगे आसमा में मेरे दम !
गुरुआ की जमी पे लिया है हमने यूँ जनम ,
तू साथ तो दे कर देंगे हम रोशन कदम -कदम !"

कोई भौंरा बगीचे की हर एक कलियों पे मरता है,
मधु पी के नशे में भी वो क्यूँ आहें ही भरता है?
शमा की आग में जलने से परवाना नहीं डरता,
शमा के साथ जीता है शमाँ के साथ मरता है....!

कोई दिलवाला तेरी यादों में हद से भी गुजर जाये...
कोई मतवाला तेरी आँखों में छलके जाम पी जाये..
तुझे दे दे ख़ुशी इतनी कोई मिल जाये यूँ ऐसा,
के,तेरी आँखों में आंसू भी ख़ुशी बनके छलक आये..!

खड़े होके न तुम देखो ये तो महफ़िल हमारी है,
भले ही राह तेरी है मगर मंजिल हमारी है,
मेरी आँखों के आंसू की तनिक परवाह मत करना...
मुझे इतना ही कह देना मुझे हमदम न तडपाये..!!

दुआ में एक गुलशन दोस्ती का तुम सजा लेना..
मेरी नाकाबिले अर्जी को तुम काबिल बना लेना..
खुदा को ढूंढता जो भी फ़रिश्ते की तरह आये,
उसी को ईद के मौके पे तुम ईदी बना लेना....

ज़माने को ज़माने से खुदा ने टूटते देखा ...
अमन के नाजनीनों को समर में जूझते देखा ...
जहाँ में फिर खुदा ने भेजकर गुलशन नया ऐसा ,
ज़मीं पे फिर चमन को मुस्कुराते झूमते देखा ....!!

1 टिप्पणी:

  1. आपने बहुत ही सुंदर भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार रचना लिखा है! बहुत बढ़िया लगा!

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--धन्यवाद !