कवि बनने की राह पर नए खुशबूदार पुष्प मिले ,उन्हें एक माला की तरह,अपने कविता-प्रेम के धागे में पिरोकर आगे बढ़ता गया,इन नए पुष्पों को संजोने की कोशिश में एक बहका सा और थोडा भटका सा शायर बन बैठा ,यहाँ प्रस्तुत हैं कुछ वैसे ही अनमोल पुष्प जिन्हें अलग विषयों और अलग-अलग लोगों की पसंद के अनुसार लिखा था मैंने.आप सबसे यही अपेक्षा है कि मुझे आपके प्रेम की छाँव-तले और भी नए खुशबूदार पुष्प मिलें.जिन्हें अपने उसी प्रेम की माला में पिरोकर मैं एक अच्छा शायर और एक उत्कृष्ट कवि बन जाऊं!
बुधवार, 21 अक्तूबर 2009
देखो छलक न जाए.....!
देखो छलक न जाये अब ये जाम तेरी आँखों से...
हमको फंसा न देना कर बदनाम तेरी आँखों से...
लुट जायेंगे सब तेरी चाहत के ये दीवाने...
उन पर लगा न देना अब इल्जाम तेरी आँखों से....!
परवाना सुनता है अब हर नाम तेरी आँखों से...
दीवाना है देख रहा अंजाम तेरी आँखों से...
खुद को साबित करने को हैं बेतरतीब निगाहें..
इनका मत लेना कोई एग्जाम तेरी आँखों से...!
दीवानों का तो है पीना अब काम तेरी आँखों से..
उनको तू ये दे देना पैगाम तेरी आँखों से...
के, परवानों का शिद्दत से यूँ दरिया में बह जाना,
कर जाता है घायल क्यूँ ये जाम तेरी आँखों से...?
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आपके कमेन्ट के लिए थैंक्स... मैंने ये कभी नही कहा की राहुल शत प्रतिशत सही हैं.. मैंने कहा है की जो वे कर रहे हैं, उसे तो कम से कम सराहा जाना चाहिए. बुराइयाँ राहुल में भी हैं. राजनीति से वे भी काफी प्रेरित हैं. लेकिन और नेताओं से तो अच्छा ही है...
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