इसकी भी है उसकी भी है हर प्याले की है हाला,
क्यूँ "चम्पक" को आंसू भर-भर के, जाम पिलाती मधुशाला...?
हर ओर भ्रमर का राग सुनु, अब हर पराग भी है व्याला...
पर क्यूँ "चम्पक" अब हर प्याले में, खोज रहा यूँ मधुशाला?
क्यूँ शीतलता के दामन से, है ओत-प्रोत यह कर-माला...
फिर भी "चम्पक" को कर-माला से, दूर रखे क्यूँ मधुशाला...?
मधु की ऊष्मा का आलंबन, "चम्पक" से क्यूँ छीने हाला...
यदि नही मिले मद-मधु-माला, दे मुझे हलाहल-मधुशाला...!
प्यासा पथ पे मधु का कब से ढूंढें अपनी प्यासी हाला...
क्यूँ "चम्पक" को ग़म के आंसू, भर-भर देती है मधुशाला...?
हाला प्यासी, प्याले प्यासे, प्यासी है प्याले की हाला...
अब डगर-डगर "चम्पक" की धुन, क्यूँ गाये प्यासी मधुशाला...?
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
ब्लॉग पर आने के लिए और अपने अमूल्य विचार व्यक्त करने के लिए चम्पक की और से आपको बहुत बहुत धन्यवाद .आप यहाँ अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर हमें अपनी भावनाओं से अवगत करा सकते हैं ,और इसके लिए चम्पक आपका सदा आभारी रहेगा .
--धन्यवाद !