ओ सजीले, नयन नीले, अधर तेरे हैं रसीले....
सुन ज़रा-सा, स्नेह तेरा, मांगता हूँ और क्या..?
घोलती है कान में बस, यूँ तेरी आवाज हरदम...
तुम न हो जो पास तो, फिर सांझ क्या, फिर भोर क्या...?
पूछता है दिल मुझी से, तुम कहो क्या चाहते हो....
मैं कहूँ क्या,कह सका ना, दिल में है क्या, जान में क्या...?
मैं तुझे मदिरालयों में ढूंढता-फिरता रहा हूँ....
तुम मिले तो सांझ क्या,जब ना मिले तो भोर क्या...?
सुन तेरी आवाज अब मैं, हर-तरफ पहचानता हूँ....
तुम रहो गुमसुम सदा, तो गीत क्या, फिर शोर क्या....?
कवि बनने की राह पर नए खुशबूदार पुष्प मिले ,उन्हें एक माला की तरह,अपने कविता-प्रेम के धागे में पिरोकर आगे बढ़ता गया,इन नए पुष्पों को संजोने की कोशिश में एक बहका सा और थोडा भटका सा शायर बन बैठा ,यहाँ प्रस्तुत हैं कुछ वैसे ही अनमोल पुष्प जिन्हें अलग विषयों और अलग-अलग लोगों की पसंद के अनुसार लिखा था मैंने.आप सबसे यही अपेक्षा है कि मुझे आपके प्रेम की छाँव-तले और भी नए खुशबूदार पुष्प मिलें.जिन्हें अपने उसी प्रेम की माला में पिरोकर मैं एक अच्छा शायर और एक उत्कृष्ट कवि बन जाऊं!
पूछता है दिल मुझी से, तुम कहो क्या चाहते हो....
जवाब देंहटाएंमैं कहूँ क्या,कह सका ना, दिल में है क्या, जान में क्या...?
मैं तुझे मदिरालयों में ढूंढता-फिरता रहा हूँ....
तुम मिले तो सांझ क्या,जब ना मिले तो भोर क्या...?
बहुत सुंदर और शानदार रचना लिखा है आपने ! ख़ूबसूरत भाव और अभिव्यक्ति के साथ लिखी हुई आपकी ये रचना काबिले तारीफ है ! हर एक पंक्तियाँ लाजवाब है!