अब हमारी ख़ामोशी का इम्तिहान मत लेना....
नहीं-नहीं बुत हम नाकामी का तुम शोर न करना..
हमें दुश्मनी का जैसा तुम पाठ पढ़ाते हो अब
उसी रपट के इश्तिहार पे तुम अब जोर न करना..
अगर खून से मासूमों के खेल तुझे भाते हैं....
मगर खुदा की सूराएँ बेमेल नज़र आते हैं.....
जिस कुरआन की तुम आयत का देते सदा हवाला..
उसी पाक कुरआन की अब तुम बात कभी न करना...
उसने जिसे सभी खुदा का नाम इधर है लाया .
उसकी हर नेमत प्यारी है, है वो बड़ा खुदाया..
अब उसके नामों की तुम बस पाक इबारत करना...
दे देगा वो जन्नत तुमको तुम बस जतन ये करना..
मंज़र नहीं तबाही का अब फिर से मुह बाएगा..
हैवानों पे इंसानों का फतह नज़र आएगा....
उन वीरों की कुर्बानी को हर लम्हा याद रखेगा..
अब खूं कितना भी बह जाये यह ज़ज्बा नहीं थमेगा..
कवि बनने की राह पर नए खुशबूदार पुष्प मिले ,उन्हें एक माला की तरह,अपने कविता-प्रेम के धागे में पिरोकर आगे बढ़ता गया,इन नए पुष्पों को संजोने की कोशिश में एक बहका सा और थोडा भटका सा शायर बन बैठा ,यहाँ प्रस्तुत हैं कुछ वैसे ही अनमोल पुष्प जिन्हें अलग विषयों और अलग-अलग लोगों की पसंद के अनुसार लिखा था मैंने.आप सबसे यही अपेक्षा है कि मुझे आपके प्रेम की छाँव-तले और भी नए खुशबूदार पुष्प मिलें.जिन्हें अपने उसी प्रेम की माला में पिरोकर मैं एक अच्छा शायर और एक उत्कृष्ट कवि बन जाऊं!
उन वीरों की कुर्बानी को हर लम्हा याद रखेगा..
जवाब देंहटाएंअब खूं कितना भी बह जाये यह ज़ज्बा नहीं थमेगा..
वाह बहुत सुंदर और शानदार रचना लिखा है आपने! हर एक पंक्तियाँ लाजवाब है! दिल को छू गई आपकी ये रचना जो सराहनीय है!