शुक्रवार, 20 नवंबर 2009

नव-भारत..

जिसने जीवन को दांव लगा नव-युग भारत की नींव रखी...
उनने देखे सपने बनने को जगदगुरु की चाह रखी.....
उनकी यादों को कर विस्मृत हमने क्या उनकी लाज रखी....
क्या यही वही है नव-भारत, या फिर यह है कुछ और सखी..?

अपनी इच्छा का घोंट गला क्यूँ बलिदानों की राह चुनी..
क्या यही सोचकर अंग्रेजों के जन-विरोध की तान बुनी...
के अब भारत प्रगति-पथ पर आगे ही बढ़ता जाएगा...
क्या यही वही है नव-भारत, या फिर यह है कुछ और सखी ....?

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