सोमवार, 9 नवंबर 2009

हया

मेरे इज़हार को कमज़ोर करने की तमन्ना से
मुझे हर रास्ते पे रोककर खुशियाँ मनाते हैं ..
मेरे हर जख्म को वो क्यूँ हरा करने की ख्वाहिश में
हया करते नहीं वो बेहया बन मुस्कुराते हैं..

2 टिप्‍पणियां:

  1. haya? kya pratikriya vyakt karun? siwa iske .....haya behaya nahin ho sakti .......
    haya aur behaya ka koi rishta nahin ho sakta aapas mein.
    albatta izhar karte rahiye ,hausala rakhiye ,muskurate rahiye ......zakhmon ko khud -b-khud haya aa jayegi .
    shukria.

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  2. मेरे हर जख्म को वो क्यूँ हरा करने की ख्वाहिश में
    हया करते नहीं वो बेहया बन मुस्कुराते हैं..
    शानदार और लाजवाब पंक्तियाँ! हिम्मत मत हारिये और हमेशा मुस्कुराते रहिये!
    आपकी टिपण्णी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया ! आपने बहुत ही सुंदर शायरी लिखा है जो मुझे बेहद पसंद आया! धन्यवाद!
    मेरे इस ब्लॉग पर आपका स्वागत है-
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com

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