" मेरी आवारगी से वो परेशाँ से नज़र आये..
मेरी बेचारगी से आँखों में आंसू छलक आये..
उन्हें, दिल को मेरे, रोने की आदत के ख्यालों ने,
बनाया इस कदर हैराँ के वो हंसते नज़र आये..! "
कवि बनने की राह पर नए खुशबूदार पुष्प मिले ,उन्हें एक माला की तरह,अपने कविता-प्रेम के धागे में पिरोकर आगे बढ़ता गया,इन नए पुष्पों को संजोने की कोशिश में एक बहका सा और थोडा भटका सा शायर बन बैठा ,यहाँ प्रस्तुत हैं कुछ वैसे ही अनमोल पुष्प जिन्हें अलग विषयों और अलग-अलग लोगों की पसंद के अनुसार लिखा था मैंने.आप सबसे यही अपेक्षा है कि मुझे आपके प्रेम की छाँव-तले और भी नए खुशबूदार पुष्प मिलें.जिन्हें अपने उसी प्रेम की माला में पिरोकर मैं एक अच्छा शायर और एक उत्कृष्ट कवि बन जाऊं!
उन्हें, दिल को मेरे, रोने की आदत के ख्यालों ने,
जवाब देंहटाएंबनाया इस कदर हैराँ के वो हंसते नज़र आये..!
वाह वाह क्या बात है! बहुत ही उम्दा शायरी!