
दीवानों की तरह हम भी मचलते हैं तेरे गम में,
तेरे खामोश लब की धुन नज़र आती है सरगम में,
कहीं कोई किरण अब भी नहीं आशा की दिखती है..
नजारो से ज़रा पूछो तड़प इतनी है क्यूँ हम में ?
कवि बनने की राह पर नए खुशबूदार पुष्प मिले ,उन्हें एक माला की तरह,अपने कविता-प्रेम के धागे में पिरोकर आगे बढ़ता गया,इन नए पुष्पों को संजोने की कोशिश में एक बहका सा और थोडा भटका सा शायर बन बैठा ,यहाँ प्रस्तुत हैं कुछ वैसे ही अनमोल पुष्प जिन्हें अलग विषयों और अलग-अलग लोगों की पसंद के अनुसार लिखा था मैंने.आप सबसे यही अपेक्षा है कि मुझे आपके प्रेम की छाँव-तले और भी नए खुशबूदार पुष्प मिलें.जिन्हें अपने उसी प्रेम की माला में पिरोकर मैं एक अच्छा शायर और एक उत्कृष्ट कवि बन जाऊं!
दीवानों की तरह हम भी मचलते हैं तेरे गम में,
जवाब देंहटाएंतेरे खामोश लब की धुन नज़र आती है सरगम में,
कहीं कोई किरण अब भी नहीं आशा की दिखती है..
नजारो से ज़रा पूछो तड़प इतनी है क्यूँ हम में ?
wah...behad sundar panktiyan!