कवि बनने की राह पर नए खुशबूदार पुष्प मिले ,उन्हें एक माला की तरह,अपने कविता-प्रेम के धागे में पिरोकर आगे बढ़ता गया,इन नए पुष्पों को संजोने की कोशिश में एक बहका सा और थोडा भटका सा शायर बन बैठा ,यहाँ प्रस्तुत हैं कुछ वैसे ही अनमोल पुष्प जिन्हें अलग विषयों और अलग-अलग लोगों की पसंद के अनुसार लिखा था मैंने.आप सबसे यही अपेक्षा है कि मुझे आपके प्रेम की छाँव-तले और भी नए खुशबूदार पुष्प मिलें.जिन्हें अपने उसी प्रेम की माला में पिरोकर मैं एक अच्छा शायर और एक उत्कृष्ट कवि बन जाऊं!
बुधवार, 23 मार्च 2011
कभी जब आईने के सामने होकर खड़े देखूं,
मैं आँखों में हमेशा एक ही वीरानगी देखूं,
मेरे इस दिल के वीराने में केवल तू बसी ऐसे,
के हर टुकड़े में आईने के मैं केवल तुझे देखूं..!
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ब्लॉग पर आने के लिए और अपने अमूल्य विचार व्यक्त करने के लिए चम्पक की और से आपको बहुत बहुत धन्यवाद .आप यहाँ अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर हमें अपनी भावनाओं से अवगत करा सकते हैं ,और इसके लिए चम्पक आपका सदा आभारी रहेगा .
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--धन्यवाद !