बुधवार, 2 फ़रवरी 2011

बेबस मन ..........

             


हर दिन कहना झूठ पिता से,जाता हूँ मैं रोज कहीं,
इंटरव्यू की बात चली जो,फंस जाता हूँ मगर वहीँ..!

कब तक ऐसे झूठ चलेगा,सच्चाई की राह नहीं,

पता नहीं किस्मत की रेखा क्या बतलाना चाह रही..?

ना जाने ये किन लहरों पे जीवन नैया भाग रही,
क्यूँ बेबस मन में बेचैनी घोर निराशा जाग रही....?

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