रविवार, 10 अप्रैल 2011

गीला कागज



इश्क  में  मैं  तेरे  स्याह  सी  बन  गयी ,


तू  जो  कागज  हुआ ,मैं  कलम  बन  गयी ,


तूने  देखा  नहीं  अश्क  की  धार  को ,


मैं  तेरा  कागजी -गीलापन  बन  गयी ...



तू  अकेला  कहाँ,  मैं  तेरे  साथ  थी, 


पर  कड़ी  धुप  में  मैं  नज़म  बन  गयी 


तेरी  उड़ने   की  इन   ख्वाहिशों  से  मगर 

तुझको  खोकर  भी  तेरा  सनम  बन  गयी ..



सूखे पत्ते के जैसा गिरा मैं, तभी,

डाल की हर कली चहचहाने लगी,,

जिसकी गुमनाम यादों में मैं खो रहा,

अश्क से मेरी नज़रें नहाने लगीं,


वो मेरी नफरतों की नज़म गुफ्तगू,

बनके सपनो में मुझको रुलाने लगी,



तोड़कर प्यार के दिल के भी रिश्ते वो,

हसरतों से मुझे यूँ भुलाने लगी,

सचिन,धोनी, और विश्व-कप: हिन्दुस्तान



कोई बॉलर नहीं ऐसा जिसे खेले न वो खुलकर,


"शहंशाह" है जो हर पिच का वही है जीत का मंतर,



समर में बेईमानों का जो ढीला पेंच यूँ कर दे,



वो है "भगवान्" दुनिया का जिसे कहते हैं "तेंदुलकर",





जहाँ पर हो "सचिन","सहवाग", "गौती", "कोहली", "रैना",



जहाँ "भज्जी", "युवी", "श्रीसंथ", "मुनाफु" का "ज़हीराना",



जहाँ "धोनी" की कप्तानी से थर्राए जगत सारा,


ये "हिन्दुस्तान" है इसको किसी से और क्या डरना..?


सुरूर




हमने जनम की उसने ज़माने की बात की ,

उसने मेरे सुरूर भुलाने की बात की , 

ताउम्र जिस खजाने में शामिल किया मुझे ,

उसने उसी खजाने को लुटाने की बात की ...



न फिक्र करना तू मेरी अब बेवफाई का
,
जितनी वफ़ा की,बेवफा की हद वहां तक है...

मत पूछ, मेरी हसरतें सागर हैं सितम के,

तू देख कि तेरी सबर की हद कहाँ तक है...!

गुरुवार, 24 मार्च 2011

तेरी यादें

                                


गुजरते हैं मेरे दिन तो तेरी यादों के मेले में,
तेरी यादें भी तडपाती हैं रातों को अकेले में,
तेरे खामोश  लब ने भी बड़ा मुझको सताया है,
की अब तू ही नज़र आती है तन्हाई के रेले में!


बुधवार, 23 मार्च 2011



कभी जब आईने के सामने होकर खड़े देखूं,
मैं आँखों में हमेशा एक ही वीरानगी देखूं,
मेरे इस दिल के वीराने में केवल तू बसी ऐसे,
के हर टुकड़े में आईने के मैं केवल तुझे देखूं..!

शमा तू एक बस मेरी, तेरा मैं एक परवाना..
तेरी गुमनाम यादों ने बनाया एक अफसाना..
मुझे अपना के तू देखे अगर कडवी जुबाँ वाले,
तुम्हारे  हुस्न  को झकझोर रख देगा ये दीवाना..!
t




सोमवार, 21 मार्च 2011

शिकायत







कोई  कहती  है  आवारा ,कोई  कहती  है  बेचारा ,



मगर  मैं  इश्क  के  रस्ते , भटकता  एक  बंजारा ,

कोई  कहती  ये  दीवाने  भरोसे  के  नहीं  काबिल ,

मगर  चंदा  कहाँ  होती ,अगर  होता  नहीं  तारा ..? 

शुक्रवार, 18 मार्च 2011



तेरी जुल्फों का कालापन,तेरे कजरार ये नैना..
तेरे होठों की ये लाली,तेरे गालों का नजराना..
तुम्हारे हुस्न की ऐसी चमक देखे अगर कोई...
तू उसके पास गर हो तो उसे रंगों से क्या लेना?
होली की शुभकामनाएं..!

रविवार, 6 फ़रवरी 2011

"एक" का फंडा


                  
यहाँ एक है वहां एक है,मगर एक की कथा एक है..
इसी एक को तरस रहे सब,एक नहीं जब एक fake है..!

एक नहीं तो रौब नहीं है,एक नहीं तो जॉब नहीं है...
TRUE भी एक है बाकी FALSE , एक हसीं दिलफेंक  एक है ..!

एक दर्द,दिल, एक अश्क है,एक दीवाना एक इश्क है..
एक हुस्न पे तड़प-तड़प कर,तोड़ रहा दम एक अक्स है..!

यही खुदाया एक रस्म है,एक अदालत एक चश्म है..
एक तरफ भय क्रोध दीनता,एक यहाँ संपन्न जश्न है..!

एक "एक" की कथा पुरानी,एक लफ्ज़ बिन सबकुछ पानी..
इसी "एक" को तरस रहा मैं,चलो ख़तम अब "एक" कहानी..!

बुधवार, 2 फ़रवरी 2011

बेबस मन ..........

             


हर दिन कहना झूठ पिता से,जाता हूँ मैं रोज कहीं,
इंटरव्यू की बात चली जो,फंस जाता हूँ मगर वहीँ..!

कब तक ऐसे झूठ चलेगा,सच्चाई की राह नहीं,

पता नहीं किस्मत की रेखा क्या बतलाना चाह रही..?

ना जाने ये किन लहरों पे जीवन नैया भाग रही,
क्यूँ बेबस मन में बेचैनी घोर निराशा जाग रही....?

मंगलवार, 1 फ़रवरी 2011

यौवन ...



धन्य-धन्य है मेरा मन देख के तेरा स्पंदन,
बहक रहे मेरे अंजन,छू लूं क्या ये तन-चन्दन..?


मचल रहा मेरा यौवन कहो लुटा दूं तन-मन-धन,
तेरे साँसों की खुशबु से ये पवन गूंजती है सन-सन..!


निशा नशे में झूम-झूमती चन्दन की बाहों में झन्न -झन्न,
नरम अधर के ही पराग में डूब भ्रमर करता  रस-गुंजन..!


नैन-नशीले गाल-गुलाबी होठों पे प्रियतम का चन्दन,
रति-प्रिया के अंग-अंग में झलक रहा मद-यौवन छन-छन..!

मंगलवार, 25 जनवरी 2011

हम कश्मीरी लाल-चौक पे




दुःख अतिशय यह है हमको अपनों ने ही ललकारा है,पर उनको हम देशभक्ति के पाठ पढ़ाकर आयेंगे,
नहीं डिगा सकता भय कोई ,देश-गीत हम गायेंगे,हम कश्मीरी लाल-चौक पे राष्ट्र-ध्वजा फहराएंगे...!

अपनी ही सरजमीं  हमारी राष्ट्रभक्ति फुफकार रही,वीर शहीदों की कुर्बानी को सत्ता धिक्कार  रही,
हम सुभाष और बोस भगत की वो गाथा दुहराएंगे,हम कश्मीरी लाल-चौक पे वीर-ध्वजा  फहराएंगे..!

हम स्वतन्त्र भारत के यौवन ,पर दानवता हावी है, भरत-शौर्य की याद दिलाती झेलम,सिन्धु,रावी है..
अपनी इस माटी की गौरव-गाथा नहीं भुलायेंगे,हम कश्मीरी लाल-चौक पे राष्ट्र-ध्वजा लहरायेंगे..!

बुधवार, 12 जनवरी 2011

अक्स ..!

समंदर की मचलती झूमती लहरों से कह आया,
हमें दो पल पलक में चेहरा उनका नज़र आया,
ठहर जा तू ज़रा बस दो घडी उनको तो आने दे....
हमें जिनके नशे में इश्क का दिलकश असर छाया.
..!

रविवार, 26 दिसंबर 2010

इस क़दर ....

तेरे इश्क में इस क़दर खो रहा हूँ,
सड़क पे ही मैं आजकल सो रहा हूँ,
कहीं मार डाले मुझे ना जुदाई ,
यही सोचकर मैं बहुत रो रहा हूँ....

बहारों ने मुझको मचलना सिखाया,
नजारों ने हर पल बदलना सिखाया,
तेरी याद फिर भी मुझे क्यूँ सताए ...
मैं क्यूँ इस क़दर अश्क में खो रहा हूँ...

शनिवार, 26 जून 2010

यादों के फेरें......








"मेरा हर जख्म तेरा है मेरे आंसू भी तेरे हैं,
हमें बेदर्द कहती हो मगर ये दर्द तेरे हैं,
तो फिर सौगात बनकर क्यूँ सिमट जाते हैं ये लम्हे,
इन्ही लम्हों में मुस्काते तेरी यादों के फेरे हैं..."

रविवार, 4 अप्रैल 2010






नज़र को तो तेरी नज़रों के नजराने की चाहत है,
तेरे लब से मुझे बस मुस्कुरा लेने की चाहत है,
कि अब उम्मीद है इतनी मेरे टूटे हुए दिल में,
अब इन अश्कों को किश्तों में लुटा देने की चाहत है...!




दीवानों की तरह हम भी मचलते हैं तेरे गम में,
तेरे खामोश लब की धुन नज़र आती है सरगम में,
कहीं कोई किरण अब भी नहीं आशा की दिखती है..
नजारो से ज़रा पूछो तड़प इतनी है क्यूँ हम में ?

शनिवार, 3 अप्रैल 2010






यहाँ हर मोड़ पे, हर उम्र के, दीवाने मिलते हैं,
कहीं भौंरे मधु पीते, कहीं परवाने जलते हैं..
मगर ये तो सरासर बेईमानी का फ़साना है,
वो हर पल मौज में जीते, हमें बस ताने मिलते हैं....!

शुक्रवार, 12 मार्च 2010

.......डूबता रहा हूँ मैं




किसी सूखे पत्ते की तरह हवा में यूँ ही उड़ता रहा हूँ मैं...
रास्ते के पत्थर की तरह हर ठोकर पे यूँ ही टूटता रहा हूँ मैं..
तेरा सहारा लेकर पार कर जाऊंगा मैं ये तूफ़ाने जिंदगी ,
बस इसी आस में आजतक अकेला ही डूबता रहा हूँ मैं...

शुक्रवार, 5 मार्च 2010

जुर्रत




निशाना दूर बन बैठा करीब आता तो क्या होता....
कभी दिल के करीब आने की जुर्रत मैं अगर करता..
मुझे तो बस तेरी तस्वीर अश्कों में भी दिखती थी...
कभी आँखों से मुस्काने की जुर्रत मैं अगर करता..!



शनिवार, 27 फ़रवरी 2010

तेरी हया



तेरी ज़ालिम अदाओं ने मुझे हर बार मारा है..
कभी थोड़ी हया से तो कभी बेबाक मारा है..
मेरे आंसू तेरी आँखों के शीतल नाज़ बन जाते,
मगर उनको तेरी नफरत ने तो बिंदास मारा है..!

गुरुवार, 24 दिसंबर 2009

नव-जीवन


नव!-नव जीवन की क्यारी में हरियाली ही हरियाली हो.
वर्ष-वर्ष बने यह जीवन का जिसमे केवल खुशहाली हो.

मं-मंद रहे दुःख की ध्वनि फिर कभी सुख का तीर न खाली हो.
-गणपति की हो कृपादृष्टि हाथों में धन की थाली हो.
-लघुता छोड़ श्रेष्ठता पा लें ऐसी आस निराली हो.
-मन प्रसन्न हो हर क्षण फिर होठों पे मधु की प्याली हो.
-यह वंदना करूँ मैं प्रभु से दुःख की न छाया काली हो.

हो-होना ही हो यदि तो फिर सुखमय वृक्षों की डाली हो.
आप सबों को नव-वर्ष में नव-जीवन की हार्दिक शुभकामनाएं...!.

बुधवार, 16 दिसंबर 2009

कहने को है ही क्या.....?

तेरी मुस्कान की क्या बात है सारे मचलते हैं .......
इधर तू मुस्कुराती है उधर भँवरे फिसलते हैं .....
नज़र को है तेरी अश्कों के दामन का ही सहारा ......
अदाएं तू दिखाती है तो क्यूँ मुझसे वो जलते हैं .......?


तुझे अब क्या कहूं ,कैसे कहूं ,कहने को है ही क्या .......?
कोई दरिया से जो उलझा तो बचने को बचा है क्या ..?
के एक दिन चाँद से पूछा ,बता क्या ख़ास है उसमे ,
नज़र से जब नज़र मिल जाये ,तो शरमाने को है ही क्या ?..
आज तो चाँद कुछ कहता ,मगर ,सूरज निकल आया ..
कहा फिर चाँद ने चुपके से ,के अब ,कहने को है ही क्या....?

शनिवार, 12 दिसंबर 2009

मेरे दिन तेरे बिन....!

तुझे याद कर दिन गुजरते रहे,ये आंसू तेरे गम में झरते रहे ...
इन्हें कोई अपना समझता नहीं,ये क्यूँ बेखबर हो बरसते रहे..!

बस उम्मीद है इनको अब ये कहीं के, दिख जाये उनकी झलक एक दिन..
बसाने को उनकी नज़र दिल में अब ये, नज़र भी नज़र को तरसते रहे...!

मेरी आरजू है तेरी ख्वाहिशों में, बनके चमन हम महकते रहे....
तेरे लफ्ज़ में अपनी आवाज़ मिल के, आवाज़ देने को तरसते रहे...!

तेरे हुस्न का अब ये दीदार करने को, नज़र मेरी क्यूँ अब तरसते रहे....
इन्हें कोई इनका ठिकाना बता दे,ये हर पल ठिकाने को भटकते रहे....!


सोमवार, 7 दिसंबर 2009

सो, हे अलि....!


मैं दिव्यमय तुम ज्योति को कैसे सहन कर पाऊंगा..
मैं चन्द्र बनकर भाप फिर तुझ ज्योति से उड़ जाऊँगा!

तव शिखर की उस दिव्यता में डूब जाना चाहूँ मैं,
तुझमे गुरु सी दिव्यता है पर कहाँ राहू हूँ मैं..!

तव आस में मैं गल गया आंसू की गिरती धार में,
तुम हो कहाँ आओ प्रिये मैं डूबता मंझधार में..!

तुम हो विरह की प्रणयिनी मैं भ्रमर-सा गुंजन करूँ,
तव-विरह के इस भँवर में किस पुष्प का अंजन करूँ ?

हे चांदनी तुम रात में निकलो न इतनी शान से,
मैं डर रहा कहीं खो न दूँ तुझको भी अपना मान के..!

इस जन्म के अंतिम क्षणों तक याद आएगी मुझे,
यह भूल जा किसी ज्योति पे कोई चन्द्र भी कभी न रीझे..!

ना दर्प में मैं चूर हूँ ना गर्व से अभिभूत हूँ,
मैं चन्द्र तेरी दिव्यता से तुझ ज्योति पे आहूत हूं...!

आती है तेरी याद तो हैं मुस्कुराते गम यहाँ,
गम के नगर में छोड़ कर मुझको, अली, तुम हो कहाँ?

हैं नयन तेरे शशक से औ गाल जैसे आम्रफल ,
तू है मेरे मन की ललक यह सोचता मैं आजकल..!

मैं मानता हूँ तुम समुन्नत पथ से नाता जोडती ,
औ मेरे पथ में आ गयी कठिनाइयां हैं कोढ़ सी..!

पर क्या करूँ मैं विवश हूं बाधाएं अब हैं तोडती...
सो, हे कली, आओ ना फिर,क्यूँ मुख हो मुझसे मोडती....?
सो, हे अलि, आओ ना फिर क्यूँ मुख हो मुझसे मोडती......!!

गुरुवार, 3 दिसंबर 2009

दोस्ती

रिश्तों की कभी दिल में गर कोई गरज नहीं होती...
दोस्ती मुश्किल भी नहीं और भी सहज नहीं होती...
निभा सको तो शुक्र है वर्ना राहें हो जाती हैं गमजदा,क्यूंकि,
दोस्ती रुक-रुक कर चलने वाली कोई नब्ज़ नहीं होती....!

मंगलवार, 1 दिसंबर 2009

मेरा परिचय ...

मैं हिन्दू मैं मुस्लिम,सिख इसाई मेरा परिचय,
त्रस्त जनों के दुःख का भेदन करता सुख का संचय..
मैं भंवरा मैं फूल बना यह काँटा मेरा परिचय..
मैं कलि-रस के नीर-क्षीर करता छत्ते में संचय......

गुरुवार, 26 नवंबर 2009

यह ज़ज्बा नहीं थमेगा............!

अब हमारी ख़ामोशी का इम्तिहान मत लेना....
नहीं-नहीं बुत हम नाकामी का तुम शोर न करना..

हमें दुश्मनी का जैसा तुम पाठ पढ़ाते हो अब
उसी रपट के इश्तिहार पे तुम अब जोर न करना..

अगर खून से मासूमों के खेल तुझे भाते हैं....
मगर खुदा की सूराएँ बेमेल नज़र आते हैं.....

जिस कुरआन की तुम आयत का देते सदा हवाला..
उसी पाक कुरआन की अब तुम बात कभी न करना...

उसने जिसे सभी खुदा का नाम इधर है लाया .
उसकी हर नेमत प्यारी है, है वो बड़ा खुदाया..

अब उसके नामों की तुम बस पाक इबारत करना...
दे देगा वो जन्नत तुमको तुम बस जतन ये करना..

मंज़र नहीं तबाही का अब फिर से मुह बाएगा..
हैवानों पे इंसानों का फतह नज़र आएगा....

उन वीरों की कुर्बानी को हर लम्हा याद रखेगा..
अब खूं कितना भी बह जाये यह ज़ज्बा नहीं थमेगा..

रविवार, 22 नवंबर 2009

जिंदगी

जिंदगी ने बिखरने की साज़िश रची
पर वो अपनी हया से सँवरती रही..
देख दर्पण में उसके हया की अदब,
जिंदगी भी अदब से निखरती रही..!

मैंने इज़हार के जब तराने लिखे,
वो तरानों के कागज कुतरती रही..
मैं तो उसकी अदाओं से बेहोश था..
फिर भी वो दिल में चुपके उतरती रही....!

उसके दीदार के आशियाने में बन ,
के अपनी हया श्वांस भरती रही..
बेअदब होके "चंपक' की ये जिंदगी,
ख्वाहिशों के समंदर में तरती रही...

मैं आया हूँ.......

रिमझिम रिमझिम झमझम सावन, भींगे तेरा तन मोरा मन,
इस सावन में भींग-भींग कर, झूमे क्यूँ मेरा ये तन-मन,
झूम-झूम के तुझे पुकारे, कहाँ छुपे हो मेरे रति-मन,
तेरे मिलन की शीत-प्यास से,मैं आया हूँ शरद-ऋतू बन...!

मुझे तनिक सा संवार देना, बिखरा-बिखरा सा है तन-मन...
तेरी ऊष्मा निखार देगी, सोच यही हर्षित हैं अंजन..!
प्यासे सावन से भींगे मन, मांगे तेरे चंचल अंजन..
तेरे मिलन की शीत-प्यास से,मैं आया हूँ शरद-ऋतू बन...!

शुक्रवार, 20 नवंबर 2009

नव-भारत..

जिसने जीवन को दांव लगा नव-युग भारत की नींव रखी...
उनने देखे सपने बनने को जगदगुरु की चाह रखी.....
उनकी यादों को कर विस्मृत हमने क्या उनकी लाज रखी....
क्या यही वही है नव-भारत, या फिर यह है कुछ और सखी..?

अपनी इच्छा का घोंट गला क्यूँ बलिदानों की राह चुनी..
क्या यही सोचकर अंग्रेजों के जन-विरोध की तान बुनी...
के अब भारत प्रगति-पथ पर आगे ही बढ़ता जाएगा...
क्या यही वही है नव-भारत, या फिर यह है कुछ और सखी ....?

गुरुवार, 19 नवंबर 2009

अदाएं....

अदाएं आशिकों की 'जान' तो होती नहीं चम्पक,
अदाएं 'जान' ले, शम्मे-हंसी की शान होती है....
कभी कोई ग़ज़ल हालात पे शायर अगर लिख दे,
अगर शायर न हो शामिल ग़ज़ल बेजान होती है..


कभी भँवरे ने कलियों से कभी कांटे ने फूलों से
बयां अपने मुहब्बत का नज़ारा यूँ किया दिल से...
मैं तेरी राह में मिट जाऊं तेरी दास्ताँ बनकर,
मुझे खारिज न कर देना तेरे इबरार-इ-महफ़िल से ..
.

बुधवार, 18 नवंबर 2009

सुन जरा-सा ..!

ओ सजीले, नयन नीले, अधर तेरे हैं रसीले....
सुन ज़रा-सा, स्नेह तेरा, मांगता हूँ और क्या..?


घोलती है कान में बस, यूँ तेरी आवाज हरदम...
तुम न हो जो पास तो, फिर सांझ क्या, फिर भोर क्या...?


पूछता है दिल मुझी से, तुम कहो क्या चाहते हो....
मैं कहूँ क्या,कह सका ना, दिल में है क्या, जान में क्या...?


मैं तुझे मदिरालयों में ढूंढता-फिरता रहा हूँ....
तुम मिले तो सांझ क्या,जब ना मिले तो भोर क्या...?


सुन तेरी आवाज अब मैं, हर-तरफ पहचानता हूँ....
तुम रहो गुमसुम सदा, तो गीत क्या, फिर शोर क्या....?

बाल-सलाह !

'सचिन' ध्यान दें खेल पर ऐसी 'बाल'-सलाह..
राजनीति के खेल पर उनकी आह-कराह...
उनकी आह-कराह मराठी हित की बात सुनाती..
पर ख़ुद की गुगली से ही पिटने पर शोर मचाती..

जीवन के अन्तिम लम्हों में भजन करें या कीर्तन..
पिछले वर्षों के पाप धुले ऐसे हो धर्मज-कर्मण..
ऐसे हो धर्मज कर्मण के अब गर्व मराठी कर लें...
सैनिक का धर्मं निभाना हो तो याद शिवा को कर लें..





मंगलवार, 17 नवंबर 2009

दिल की शायरी....

आंसुओं की स्याही से दिल के कागज पे
बयां हो दर्द-ऐ-दिल तो उसे दिल की डायरी कहते हैं,और,
महबूबा की खिदमत में महबूब के होठों से
बयां हो दर्द-ऐ-दिल तो उसे दिल की शायरी कहते हैं...!



ग़मों की आंच पे आंसू उबाल कर देखो,
बनेंगे रंग मेरे दिल पे दाल कर देखो..
तुम्हारे दिल की चुभन भी ज़रूर कम होगी,
मेरे दिल में चुभे कांटे निकाल कर देखो....!


अपने होठों पे यूँ ही मुस्कान बिछाए रखना,
अपनी आँखों में यूँ ही खुशियाँ सजाये रखना..
तुझे पाने को हर पल मचलता होगा वो,
उसकी चाहत को अपने दिल में यूँ ही जगाये रखना...!


तेरे होठों से खुद को पीने की ख्वाहिश है मेरी,
इस क़दर छह रहा है नशा मुझपे तेरी जवानी का..
तुझे तो मिल जायेंगे सनम कितने हसीं तराने,पर,
इतना तो बता क्या होगा फिर मेरी कहानी का..?


जबसे देखा है तुमको मेरी चाहत खो गयी है,
तुझे पाना है शायद इसीलिए तुझसे मुहब्बत हो गयी है..
देखो,अब न मत कह देना,क्यूंकि,
तुझे पाकर लगेगा के मेरी इबादत हो गयी है......!


कभी दिल के झरोखे में तेरा ही एक सपना था,
कभी पलकों के साए में मेरा एक दोस्त अपना था..
तुझे तो दिल की चौखट पे कभी मैंने बुलाया था,
वो,यूँ के नाम मेरे लब को बस तेरा ही जपना था...!


जहाँ देखूं वही तेरी ही खुशबु से महकता है,
जिसे चाहूँ वो भी तेरी ही गलियों में चहकता है..
कभी खुद की तरफ जो गौर से देखा यूँ ही मैंने,
मेरी आँखों में केवल तू ही बस्ती है ये लगता है..!

दोस्ती में दर्द हो तो वो प्यार होता है,
दर्द कुबूल हो तो वो इकरार होता है..
दर्द सह न पाओ तो वो इंतज़ार होता है,और,
दर्द सह लो तो वही तो इश्क-ऐ-इज़हार होता है....

सोमवार, 16 नवंबर 2009

तेरे इश्क में..

तेरे इश्क में मैं इस क़दर जिया हूँ के जीना भी जेने -सा लगता नहीं है ..
तेरे प्यार के गम में इस क़दर पिया हूँ के पीना भी पीने-सा लगता नहीं है....
तेरे इश्क में मैं.....

शनिवार, 14 नवंबर 2009

बाल-दिवस पर बच्चों को समर्पित: "बच्चे मन के सच्चे ."..

बच्चों के चाचा हैं जैसे बच्चे मन के सच्चे..
करते मनोविनोद सभी के बनके बच्चे अच्छे..
बनके बच्चे अच्छे सब लोगों को सदा सुहाते..
अभी शरारत हंसी-ठिठोली दुःख में भी ये सच्चे.
बिलकुल, बच्चे मन के सच्चे..
हाँ जी,बच्चे मन के सच्चे..!

समर्पण...!

दिव्य नही गर दीप हो तुम,मैं कहाँ विषधर, कहाँ तुम हो प्रिये कुमकुम..!
कर समर्पण तुझमे अपना स्वत्व मैं यह मान लूँ ,
कि तू सुधा से है लसित,औ, मैं गरल में गुम..हाँ,मैं गरल में गुम....!

जीव-प्रकृति की इस अद्भुत प्रणय-लीला के लिए,
बनके आया हूँ मैं उस अमरत्व की इक बूँद..
जिसकी खातिर जन्मते हैं सैंकड़ों नर-नारीगण,
औ,चाँद-लम्हे ढारकर खो जाते हैं बन धुंध....हाँ मैं गरल में गुम..!


दीप की उत्तुंग ज्योति में स्वत्व का आवेश कर,
क्यूँ भला, वह कीट कहता स्नेह का फ़िर वेश धर..
तू ही मेरा धर्म है औ तू ही मेरी आत्मा,
पाश में खो जाऊं तेरे मैं विरल बन धूम... हाँ,मैं गरल में गुम....!


भूलकर भी मैं तुम्हे कर याद सकता हूँ प्रिये,
क्यूँ सोचती हो इस तरह क्या भूलना मैं छोड़ दूँ.
भूलना है इक क्रिया तो याद करना प्रतिक्रिया,
स्नेह के आवेश में ये द्विपदी है अनुलोम...हाँ, मैं गरल में गुम..!

शुक्रवार, 13 नवंबर 2009

उनकी परेशानी...!

" मेरी आवारगी से वो परेशाँ से नज़र आये..
मेरी बेचारगी से आँखों में आंसू छलक आये..
उन्हें, दिल को मेरे, रोने की आदत के ख्यालों ने,
बनाया इस कदर हैराँ के वो हंसते नज़र आये..! "

सोमवार, 9 नवंबर 2009

हया

मेरे इज़हार को कमज़ोर करने की तमन्ना से
मुझे हर रास्ते पे रोककर खुशियाँ मनाते हैं ..
मेरे हर जख्म को वो क्यूँ हरा करने की ख्वाहिश में
हया करते नहीं वो बेहया बन मुस्कुराते हैं..

शनिवार, 7 नवंबर 2009

व्यस्त केश सह दो मृदंग अरु शीत नयन से कहाँ चली..?
चैन शिखर का लूट कृपण-सी चंचलता से नहा चली....

चन्द्र बना मैं शीतलता से व्योम केश से कह आया...
मैं तेरा अर्धांग इधर हूँ तुम हो कहाँ जगाद्माया..?


नैनों की मदिरा छलकाकर मृगनयनी बन इठलाती..
तू मृगी मृग तेरा मैं फिर क्यूँ पास आने में सकुचाती..?


अगर कहो तुम निश्छल हंसी हो औ मैं असुअन की धारा..
तब निर्द्वंद्व भाव से फिर मैं छोर चलूँ यह जग सारा..


तुम बिन जीना इस दुनिया में मुझको नहीं गंवारा...
बस इतना कह पाउँगा मैं तुम जीते मैं हारा...


तुम जीती मैं हारा सखी-री, तुम जीती मैं हारा...!

गुरुवार, 5 नवंबर 2009

प्रतिबिम्ब...!


ये अधर नहीं प्रतिबिम्ब तेरी मधु से मीठे मुस्कान की है..
जिनके प्यासे अब तड़प रहे उनके प्रेयस अनुमान की है...
इनकी शीतलता के अनुभव का आलिंगन अब कौन करें....
इन होठों पे अब यही प्रश्न अधरों के मद-अभिमान की है..

रविवार, 25 अक्तूबर 2009

चम्पक-नामा ...!

हमारी हस्ती है सबकी दोस्ती से बढ़कर एक कदम !
यह जाम छलक जाने दो एक बार तो सनम !
बांधेंगे मिलके एक हम ऐसी निषे -समां ,
के हर वक़्त नजर आएंगे आसमा में मेरे दम !
गुरुआ की जमी पे लिया है हमने यूँ जनम ,
तू साथ तो दे कर देंगे हम रोशन कदम -कदम !"

कोई भौंरा बगीचे की हर एक कलियों पे मरता है,
मधु पी के नशे में भी वो क्यूँ आहें ही भरता है?
शमा की आग में जलने से परवाना नहीं डरता,
शमा के साथ जीता है शमाँ के साथ मरता है....!

कोई दिलवाला तेरी यादों में हद से भी गुजर जाये...
कोई मतवाला तेरी आँखों में छलके जाम पी जाये..
तुझे दे दे ख़ुशी इतनी कोई मिल जाये यूँ ऐसा,
के,तेरी आँखों में आंसू भी ख़ुशी बनके छलक आये..!

खड़े होके न तुम देखो ये तो महफ़िल हमारी है,
भले ही राह तेरी है मगर मंजिल हमारी है,
मेरी आँखों के आंसू की तनिक परवाह मत करना...
मुझे इतना ही कह देना मुझे हमदम न तडपाये..!!

दुआ में एक गुलशन दोस्ती का तुम सजा लेना..
मेरी नाकाबिले अर्जी को तुम काबिल बना लेना..
खुदा को ढूंढता जो भी फ़रिश्ते की तरह आये,
उसी को ईद के मौके पे तुम ईदी बना लेना....

ज़माने को ज़माने से खुदा ने टूटते देखा ...
अमन के नाजनीनों को समर में जूझते देखा ...
जहाँ में फिर खुदा ने भेजकर गुलशन नया ऐसा ,
ज़मीं पे फिर चमन को मुस्कुराते झूमते देखा ....!!

बुधवार, 21 अक्तूबर 2009

देखो छलक न जाए.....!


देखो छलक न जाये अब ये जाम तेरी आँखों से...
हमको फंसा न देना कर बदनाम तेरी आँखों से...
लुट जायेंगे सब तेरी चाहत के ये दीवाने...
उन पर लगा न देना अब इल्जाम तेरी आँखों से....!

परवाना सुनता है अब हर नाम तेरी आँखों से...
दीवाना है देख रहा अंजाम तेरी आँखों से...
खुद को साबित करने को हैं बेतरतीब निगाहें..
इनका मत लेना कोई एग्जाम तेरी आँखों से...!

दीवानों का तो है पीना अब काम तेरी आँखों से..
उनको तू ये दे देना पैगाम तेरी आँखों से...
के, परवानों का शिद्दत से यूँ दरिया में बह जाना,
कर जाता है घायल क्यूँ ये जाम तेरी आँखों से...?

मंगलवार, 20 अक्तूबर 2009

बचपन-चिर-यौवन...!

बचपन के सपनो को ढोता अब डगर-डगर मैं भटक रहा,
अपनी हालत पे पछताता नैनो से आंसू छलक रहा..!

किसकी स्नेहिल आँखों से मैं देखूं कोई मधुरिम सपना,
अब नज़र नहीं आता दुश्मन अब नहीं रहा कोई अपना..!

किसने पैरों से है कुचला किसने हाथों से मसल दिया,
किसने कर से कर मिला मुझे किस्मत का उर्वर फसल दिया...!

अब ऐसे पथ पे निकल पड़ा हूँ जहाँ अथक चलता जाऊँ,
हर बाधाओं को तोड़ विकट संकट में भी बढ़ता जाऊं..!

क्या कभी समय वो आएगा जब मेरा बचपन खेलेगा,
बचपन से यौवन का संगम सर्वस्व-समर्पण ले लेगा...!

मंदी ने ऐसा मंद किया हर ऑर निराशा का घेरा,
आँखों में बेचैनी छाई मन में भावुकता का डेरा..!

वो कहाँ पिता की गोद विहग वो यूँ माँ की फैली बाहें,
बचपन अब भी उम्मीदों के साए में दिखलाता राहें..!

बस यही समर में गूंजेगा हम हर हालत में जूझेंगे,
अब हर मुश्किल में और सुघड़ ताकतवर बनकर उभरेंगे..
!

सोमवार, 19 अक्तूबर 2009

शुभ दीवाली...!

यह वही अमावस है जिसमे अँधेरा जग में छाता है..
पर अँधेरे से निकल तभी दीपक रोशन सा आता है..
सबकी दुनिया को दे ज्योति
खुशियों का राग सुनाता है..
ऐसे हो जग जगमग सबका हर पल ये वो समझाता है...
इस दीवाली में दिल अपना यूँ सूना-सूना सा लागे,
पर होठों पे मुस्कान तेरी मन को मेरे शीतल लागे...
अब रब से बस इतना कह दूं ये दुआ हमारी सुन लेना..

चम्पक
के सब मित्रों को तू शुभ-दीवाली कह खुश रखना....!

बुधवार, 14 अक्तूबर 2009

भ्रमर-गुंजन....!


यदि नही होता पराग फूलों के अंतस्थल में, फिर क्या भ्रमर भ्रमण करता कलियों के वासस्थल में....? नही पुष्प-मधु बिन भंवरों का रस-गुंजन तब होता, फिर सरसता को भ्रमर-पथ्य का योजन करना होता.......!


----
Champak

रविवार, 11 अक्तूबर 2009

चम्पक की मधुशाला...!


इसकी भी है उसकी भी है हर प्याले की है हाला,

क्यूँ "चम्पक" को आंसू भर-भर के, जाम पिलाती मधुशाला...?


हर ओर भ्रमर का राग सुनु, अब हर पराग भी है व्याला...

पर क्यूँ "चम्पक" अब हर प्याले में, खोज रहा यूँ मधुशाला?


क्यूँ शीतलता के दामन से, है ओत-प्रोत यह कर-माला...

फिर भी "चम्पक" को कर-माला से, दूर रखे क्यूँ मधुशाला...?


मधु की ऊष्मा का आलंबन, "चम्पक" से क्यूँ छीने हाला...

यदि नही मिले मद-मधु-माला, दे मुझे हलाहल-मधुशाला...!


प्यासा पथ पे मधु का कब से ढूंढें अपनी प्यासी हाला...

क्यूँ "चम्पक" को ग़म के आंसू, भर-भर देती है मधुशाला...?


हाला प्यासी, प्याले प्यासे, प्यासी है प्याले की हाला...

अब डगर-डगर "चम्पक" की धुन, क्यूँ गाये प्यासी मधुशाला...?